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ग़ज़ल
नूर-ए-ईमाँ सुर्मा-ए-चश्म-ए-दिल-ओ-जाँ कीजिए
पर्दा-दार-ए-हुस्न-ए-यकता चश्म-ए-हैराँ कीजिए
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं
नफ़अ' कम करते हैं ऐ यार ज़ियाँ खींचते हैं
वाली आसी
ग़ज़ल
पूछ न हम से कैसे तुझ तक नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ लाए हम
किन राहों से बच कर निकले किस किस से कतराए हम
ज़ुबैर रिज़वी
ग़ज़ल
मेरी आँखों से गुज़र कर दिल ओ जाँ में आना
जिस्म में ढल के मिरी रूह-ए-रवाँ में आना
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
यूँ दिल ओ जान की तौक़ीर में मसरूफ़ था मैं
जैसे अज्दाद की जागीर में मसरूफ़ था मैं